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अपने विहार में धर्मापदेश द्वाग जगत का महान उपकार मिया है भाप श्रुतज्ञानी महान विद्वान एवं विशिष्ट तपोनिष्ठ वीतराग महर्षि थे लिखते हुए हर्ष होता है कि ऐसे साधुरत्न इसी वंश में उत्पन्न हुए। इनकी गृहस्थ अवस्थाके सुपुत्र पायुर्वेदाचार्य पं० जयकुमार जीव शास्त्री नागौर (मारवाड) में स्वतन्त्र व्यवसाय करते हैं।
इनस छोटे भाई श्रीमान पण्डित मक्खनलाल जी शात्री हैं और उनसे छोटे भाई श्रीमान वाबू श्रीला ज जी जौहरी हैं जो सकुटुम्ब जयपुर में जवाहरात का व्यापार करते हैं और बहुत धार्मिक तथा प्रामाणिक पुरुष हैं। इस प्रकार पद्मावतीपुरवाल जाति के पवित्र गौरव का रखने वाला यह समस्त परिवार कट्टर धार्मिक और विद्वान है। इस दृढ धार्मिक, चारित्र-नि, विद्वान कुटुम्ब का परिचय लिखते हुये मुझे बहुत प्रसन्नता होती।
ग्रन्थ परिचय षटखण्डागम जैन तत्व एवं जैन वाङमय की वर्तमान में जड़ है, अथवा यह कहना चाहिये कि जीव तत्व और कर्म सिद्धांत ब यह सिद्धांत शाल भदुत भण्डार है। इसमें सन्देह नहीं कि इस के पठन-पाठन का अधिकार सर्व साधारण को नहीं है। केवल मुनि सम्प्रदाय को हो इसके पठन-पाठन का अधिकार है। इसी माशय को लेकर परिडत जी ने सिद्धांत शास्त्र के मुद्रण विक्रय पौर गृहस्यों द्वारा उसके पठन-पाठन का विरोध किया। इन का यह सुझाव मागमानुकून ही है। जबसे उक अन्धों का