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उनका अन्त हो गया।
उनके वर्तमान पुत्रों में सबसे बड़े जाना मिळून लाल जी है। होंने मनीगढ में ५० छालाल जो से संस्कृत का अध्ययन किया था वे भी बहुत धार्मिक है।
सनसे बोटे श्रीमान धर्मरत्न पं० लालाराम जी शास्त्री हैं, बापने भनेको संस्कृत के उनचकोटि के ग्रंथों की भाषा टीकायें बनाई है। मादि पुराण की समीक्षा की परीक्षा भादि ट्रैक्ट भी लिखे हैं जिनका समाज ने पुरा भारर किया है । तथा भक्तामर शतद्वयी नामक संस्कृत ग्रन्थ की बड़ी सुनसार स्वतन्त्र रचनाभी मापने को है। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के सहायक महामन्त्री पद पर भी पाप अनेक वर्षों रहे हैं. जैनगजट के सम्पादक भी पाप रह चुके हैं। पाप समाज में लभ-प्रतिष्ट व उदट विद्वान हैं और प्रत्यन्त धामिक हैं पाप द्वितीय प्रतिमाधारी श्रावक हैं, इस समय माप मैंनपुरी में अपने कुटुम्बियों के साथ यते हुने वहीं व्यापार करते हैं।
-प्राचार्य सुधर्म सागर जी महाराजश्रीमान परमपुज्य विद्वद्वंधपाद श्री १०८ भाचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज उक धर्मरत्न जी के लघु भ्राता थे, प्राचार्य महाराज ने संघ के समस्त मुनिराजों को संस्कृत का अध्ययन कराया था, सुधर्म श्रावकाचार सुधर्म ध्यान प्रदीप, चतुर्विशिका इन महान मंस्कृत ग्रंथों की कई हजार श्लोकों में रचना की है। बसमाजहिलिये परम मापन भूत। महाराज ने