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आगे धौर मी पहिरे
"इसके ऊपर के (यहां पर ६३वां सूत्र सोनी जी ने लिखा है) नं० ६२ सूत्र में मलुसियीसु शब्द है, उसको अनुवृत्ति नं० ६३ सूत्र में जाती है, इस मनुषिणी शब्द को यदि भाप द्रव्यसी मानें तो बड़ी खुशी की बात होगी। क्योंकि यहां मानुषिणी के पांच ही गुलशन कहे हैं। पांव गुणस्थान बाली मानुषिक द्रव्यश्री होती है।"
(दिगम्बर जैन सिद्धांत दर्पण पृ० १५३)
ऊपर की पंक्तियों से स्पष्ट है कि सोनी जी ६३में सूत्र में साद पद नहीं बताते हैं और उसको द्रव्यस्त्री का ही प्रतिपादक बताते हैं और उस सूत्र को पांच गुणस्थानों का विधायक ही बताते हैं । आज ये ६३वें सूत्र को भावको का कथन करने वाला बता रहे है। इस पूर्वापर विरुद्ध कथन का और इस प्रकार की समझदारी का भी कुछ ठिकाना है ?
पाठकगण सोच लें कि प्रोफेसर हीरालाल जी को ही मतिभ्रम नहीं है किन्तु सोनी जी जैसे विद्वानों को भी मतिभ्रम होगया है । अन्यथा पूर्वापर विरुद्ध बातें भागम के विषय में क्यों ?
मागे सोनोजी संख्या को भी द्रव्यनियों की संख्या बताते हैं"पज्जचम शुरु प्राणं विष उत्यो मा गुखीए परिमाणं" इस गाथा को देते हुए सोनी जी लिखते हैं: "यह नं० १५८ की गाथा का माणुसीय शब्द का अर्थ केशवन
पूरा है इसमें जाने हुबे की कन्नड़ टीका के अनुसार