________________
१५६ कह रहे है। और उनके चौदह गुणस्थान बता रहे है। और द्रव्यही के पांच गुणस्थानों को प्रन्थान्तरों से जान लेना चाहिये ऐसा लिख रहे हैं। ऊपर अपने लेख में वे पांच गुणस्थान इसी १३ सूत्र में सुसिद्ध बता रहे हैं। सोनी जी कोई बात तो नहीं है जो परिपक नहीं किन्तु एक प्रौद विद्वान है। परन्तु ने पहन लेखों में उसी बात की पुष्टि कर रहे हैं जिसधे हमने इस ट्रेक्ट में की है भाजकुछ मास के पीछे उनकी समझ में उस कथन संसा विपरीत परिवान देखकर हमें ही क्या सभी पाठकों को मारमय हुए बिना नहीं रहेगा। मासु मागे वे लिखते हैं
वेदों में दो सत्र भाषद की अपेक्षा से कथन रिया है परन्तु मनुषिणी में कहीं द्रव्य की अपेक्षा और कही भारवेदी अपेक्षा कथन है ऐसे अवसर पर सन्देह हो जाता है, इस सन्देश को दूर करने के लिये व्याख्यान से, विवरण से, टीका से विशेष. प्रतिपति (निय) होता है। तदनुसार टीका मन्त्रों से और अन्य प्रन्यों से सन्देो दूर कर लिया जाता है। टीका प्रन्यों में स्पष्ट कहा गया किमानुषिणी भावलिंग की पपेसा दा गुणस्थान होते है और व्यनिंग की अपेक्षा से पाहिले पांच गुणस्थान होते हैं।"
इस धन से सोधे जी टीका न्यों के कथन को मुबारे अनुसार प्रमाण पब ऐहै परन्तु भामरेटीकामचों को मूल प्रब पक्षपाते हैं।