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ठहरती है। फिर इसी गोम्मटसार मूल इन्य में 'थो पुसटसरी'
गैर कम्मभूमि महिलाण' मादि अनेक विधान द्रग्वेद के लिये स्पष्ट माये हैं, क्या उन सबों पर पानी फेर कर सोमी जी केवल भाववेद भाव ही गोम्मटसार भर में बताना चाहते हैं जो कि मूल प्रन्य से भी सर्वथा बाधित है ? वे मार्गणा भाव प्रकरण इसमें हमें कोई विरोध नहीं है परन्त गोम्मटसार के कर्ता बाचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती ने व्यवंद का भी विधान मोम्मटसार में किया। मोंने बहुत सा कथन व्यवेद के प्राधार पर भी मागणामों में किया है। यह ग्रन्थ सेट है।
-असीम पक्षपातमागे चलकर सोनी जी स्वयं लिखते हैं
"मतासमझलीजिये धवला का और मोम्मटसार का प्रकरण एक ही है वह द्रव्य प्रकरण नहीं है दोनों के ही प्रकरण भाव. प्रकरण है। पवना में और गोम्मटसार टीकामों में विरोध भी नहीहै।"
इन दायों से पाठक 2 #प से समझ लेंगे कि यहां पर सोनी जी धवला टाका में और गोम्मटसार टीका में कोई विरोध नहीं बताते हैं। और दोनों का एक ही प्रकरण बताते हैं। परन्नु पाठकों को उनकी इस शर्त पर पूरा ध्यान देना चाहिये कि दोनों में भाव प्रकरण हो, द्रव्य प्रकरण नहीं। तभी दोनों में कोई विरोध नहीं है। ऐसा करते हैं। यदि दम्ब प्रकरण गोमरसार में टीकाकर ने लिखा दिया। या मानुषी का अर्थ