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नहीं हो सकता है." उन्हें समझना चाहिये कि यह सिद्धांत है एक बात में हो तो उल्टा सीधा हो जाता है। द्रव्य श्री इस एक बात में की तो द्रव्यस्त्रियों की साक्षात मोन प्राप्ति रुक जाती है। इस एक पानी परवा नहीं की जाय तो वे भी उसी पर्याय से मोक्ष जा सकती है? भाप भी तो 'सञ्जद' इस एक बात को रखना चाहते हैं। राम एक बात में ही तो काली को मोक्ष सिद्ध हो सकती है। एक ब त ता लम्बा है एक 'न' और एक अनुस्वार में भी उल्टा ली जाता है। फिर बाप तो यहां तक भी लिखते हैं कि
गोम्मटमार का वेद माणा नाम का प्रकरण भी - प्रकरण में यह भी भाव पारण गोम्मटसार में ग्रामोदयेण एवं इन सात अक्षरों के fhar बंदों का सामान्य और विशेष सारूप भाववेदों से सम्बन्धित" इन 'णामोदयेण दध्वं' सान बहरों का भापकी समझ में कोई मूल्य ही नहीं मालूम होता। ये सात पर मूमप्रन्यो , टीका ही नहीं। फिर भी भाप पांख मोवर बड़े साहस से कह रहे हैं कि गाम्मटसार सारी भावों से ही सम्बन्धित है ? पापको इस बात पर बहुत मार्ग पारपर्य होता है मूलाध में पाये हुय पों को देखते हुये भी उन पर कोई विचार नहीं करना प्रत्युत उनसे विपरीत खल भाषाही एक बात समृचे अन्य में बताना और साव मार मात्र कहकर उन विधान का निषेध कर देना, हमारी समझ से ऐसी बात सोनी भीको शोमा नती देवी।। पेसा बने से समसामन्य सबिप्रमाणता एव अमान्यता