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१३५ और पनि का प्रकरण होने से मानुषी के द्रव्य शरीर काही मस्य ग्रहण है। और इसी के साथ गुणस्थानों का समन्वय अतः ६३वे सूत्र में संयत का प्रहण किसी प्रकार सिद्ध नहीं होता है। हमारे इस सहेतुक रिवन पर उक्त विद्वानों को निपट से शांतिपूर्वक विचार करना चाहिये।
द्रव्य वेद का क्रमबद्ध उन्लेख क्यों नहीं? भावपक्षी सो विद्वान एक मत में यह बात लिख है कि 'गोमटमार और पटबEITR सिद्धांत शारू में सब भाषकेर काही वणन है, इन शाखांम दृश्योर का उल्लेख कही भी न
यहागम सत्रों में चार गोम्मटमार को गाथानों में ज्यने का वर्णन कहीं भी नहीं मिलता है इसमें यह बात लिहता
कि उक्त प्रों में मय वर्णन भाव का ही किया गया। ऐसा साकी विद्वानों का प्रत्येक लेख में मुख्य हेतु से कहना।।
परन्तु उनका यह कहना इन प्रयों के अन्त मनन से ही अन्यथा एमा नहीं करते।
इस सम्बा में पहली बात तो हम याममा देना चाहते हैं कि पटवएडागम करायता पापाय प्रमुख भूतानि पुष्मन्त ने मवंत्र जितना भी विवेचन किया है बाक्रम पद्धति से ही किय है। बिना किसी निश्चित कम विधान ऐसे महान शाबों की महत्व पूर्ण रचना नहीं बन सकती है। उन्होंने बीसलपणामों काहीरन शाबों में प्रतिपादन किया है। उनमें भी गया और गुषस्थान रे को मुख्य है। सामायिक और माविक