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भावती और द्रव्यत्रीरोनों में भावा है। जहां शरण हो बहामा अलगाया जाता है।
भागे पसार सोनी जी गोम्मटसार जीवकांड की-मोरालपाते और मिले सासबसम्मे इन दो गाथाबोंब प्रमाण देकर यह बता रहे हैं कि बोवेर पोरन सकवे के जय वाने असंयन सम्पष्टि में प्रोदारिक मिश्र काययोग नहीं होता। किन्तु वह वेद के उज्य में ही होता है। सी यह पौरारिक मिम योग का कथन तो द्रव्यत्री को अपना से ही बन सकता है । उनका प्रमाण ही उनके मानव्य का बारक है। भागे उन्होंने प्राकृत पञ्च सह का प्रमाण देकर वही बात दुहराई है कि ये गुणस्थान में भौतारिक मित्र योग में सीवर का उत्य नहीं है बन पुका पी.दय है । सो इस बात में भापत्ति किसको है? यह सोनी जी काममाण भी स्वयं उनके मन्तव्य का घातक है । क्योंकि उन सब प्रमाणों से 'द्रव्यती की अपर्याप्त अवस्था में सम्यग्दृष्टि मरकर अपम नहीं होता यही बात सिद्ध होती है, न कि बोनी बीरे मनाम्पानुसार भाखोसिदि । भारती कालो बन्म मरण ही नही कर सीट से भौगरिक मिश्रयोग कसे बनेगा इसे सोनीपोहाय मो, बदि में हमारे कान में शहोमो गो
मार विशेषणों से विचार लेवें। भागे प्रभाब भी काठगोल
सदापुरोगीकोवि समगाए। बोसंहपरेमसो गायक परिमविरवाए।