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पर्याप्तक जीवों का ग्रहण नहीं होगा।
दीद्रिय, त्रीद्रिय और चतुरिद्रिय ऐसे जो सूत्र में पद हैं उनसे द्वींद्रिय माति. श्रीयिजाति और चरिद्रियजाति नामकर्म के उदय संयुक्त जीवों का ग्रहण करना चाहिये। ___ यहां पर जब सर्वत्र नामकर्म के उदय से रचे गये द्रव्य शरीर
और जाति नामक के उदय से रची गई द्रव्यन्द्रियों का जीदों में विधान किया है तब इतना सह विवेचन होने पर भी 'पटम्बएडागम में केवल भाववेद का ही कथन है दुव्यवेद का कथन प्रन्यांतरों से देखो' ऐसा जो भावपक्षी विद्वान कहते हैं वह क्या इस षटखण्डागम के ही कथन से सर्वथा विपरीत नहीं ठहरता है ? अवश्य ठहरता है। यहां पर तो भाववेद का कोई विकल्प हो खड़ा नहीं होता है। केवल द्रव्यशरीरी जीवों की संख्या द्रव्यप्रमाणानुगम हार से बताई गई है। सोनी जी प्रभृति विज्ञान विचार करें। सोनी जी ने द्रव्यप्रमाणानुगम का प्रमाण अपने लेख में दिया है इसीलिये प्रसङ्गवश हमें उक्त प्रकरण में इतना खुनासा और भी करना पड़ा।
सभी मनुयोग द्वारों में द्रव्यवेद भी कहा गया है।
जिस प्रकार ऊपर सत्प्ररूपणा और द्रव्यमाणानुगम इन दो अनुयोग द्वार में द्रव्यवेद का स्फुट कथन है। इसी प्रकार अन्य सभी अनुयोग द्वारों में भी द्रव्यवेद का वर्णन है। उनमें से केवल बोड़े से उद्धरण हम यहां देते हैं
भाइसेण गदियाणुवादेण पिरयगदीये ऐरएएसु मिला