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(पृष्ठ १७० धवला) अर्थ-इस प्रकार योग मार्गणा के निरूपण करने के अवसर पर ही पर्याप्त और अपर्याप्तकाल युक्त चारों गतियों में सम्पूर्ण गुणस्थानों की सत्ता बता दी गई है।
शहा-बाकी को (जो वेद क.पाय भादि मागेणामों का पागे विवेचन करेंगे उन) मार्गणाओं में यह विषय (पानि अपर्याप्ति के सम्बन्ध से) क्यों नहीं कहा जाता है?
उत्तर-दलिय नहीं कहा जाता है कि इसी कथन से सर्वत्र गता हो गया है। क्योंकि पारों गतियों को छोड़कर भौर कोई मागगायें नहीं है।
इस प्रकरण समाप्ति के कथन सं धवलाकार ने यह बात सिद्ध कर दी है कि भाग की वेद कषायादि मार्गणाओं में पर्याप्तियों
और अपयामियों के सम्बन्ध में गुणस्थानों का विवेचन नहीं किया है । अतएव इन वेदादि मार्गणामों में द्रव्यशरीर का वर्णन नहीं है किन्तु भाववेद का हो वर्णन है। और भाववेद का कथन होने से उन मार्गणामों में भावसो की विवक्षा में चौदह गुणस्थान बताये गये हैं । धवलाकार के इस कथनसे और पयाप्ति अपर्याप्ति सं सम्बन्धित गुणस्थानों के विधायक सूत्रों के कथन से यह बात सिद्ध हो गई कि पटखएडागम सिद्धांत शास्त्र में केवल भाववेर काही कथन नहीं है जैसा कि भाववेद-वादी विद्वान बना रहे हैं किन्तु उस में चार मार्गणामों एवं पर्याप्त प्राप्ति के विवेचन तक द्रव्यवंद काही मुख्य रूप से कथन है और उस प्रकरण के