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पर्याय में उत्पन्न नहीं होने की अपेक्षा से हैं। फिर यह बात भी विचित्र है कि भार्याप्त मानुस का वियतो सब सा उसका ग्रहण नहीं कर शरीर को अपूर्णता द्रव्य पुरुष को बताई जाय ? यह कौन मा हंन है? जहां जिसको अपर्याप्त होगी वहां उमा का अपर्याप्त शरीर लिया जायगा। यदि यह कहा जाय कि भाव खी गैर व्यबी दानों रूपही १२वें सत्र को मानेंगे तो भी द्रव्य. खी का कथन सिद्ध होता है। यह कहना भी प्रमाण शून्य है कि द्रव्यवेद पुरुष का हाने पर भी चौथं गुणस्थान में अपर्याप्त अवस्था में भावत्री वेद का उदय नहीं होता है। जबकि भावत्री वेद के उदय में नोवां गुणस्थान होता है तब चौथा होने में क्या बाधकना? हो तो भावपक्षी विद्वान प्रगट करें ! अतः इस कथन से सिद्ध है कि वां सूत्र द्रव्यत्री का ही प्रतिपादक है । गोम्मटसार की उपयुक्त २८७ गाथा सं यह भी सिद्ध है कि गोम्मटसार भी द्रव्यवेद अथवा द्रव्य शरीर का विधान करता है। यह निर्विवाद बात है और प्रत्यक्ष है।
-भाववेद मानने से ६३२ सत्र में दोषइसी प्रकार ६३वें सत्र को यदि भाववेद का ही प्रतिपादक माना जायगा तो जैसे पर्याप्त अवस्था में भावत्री वेद के साथ द्रव्य पुरुष वेद हो मकता, वैसे द्रव्यत्री वेद भी हो सकता। १५ सूत्र में भाव और द्रव्य समवे भी माना जा सकता है। देसी अवस्था में सूत्र ६३वें में 'सञ्जद' पद जोड़ने से द्रव्य मी के चोदा गुणस्थान सिद्ध होंगे, उसका निरसन भावपक्षी विद्वान