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एसा क्यों लिखते हैं, यदि यह जीव भाव और द्रव्य दोनों से पुरुष रहे तो इसमें क्या मापत्ति है ?"
इसके उत्तर में हमारा यह समाधान है कि हमें उसमें भी कोई आपत्ति नहीं कि भाववेद और व्यवेद दोनों पुरुषवेद रहें परन्तु वस्तु विचार की दृष्टि से अन्धकार वहां तक विचार कर सूत्र एवं शाख रचना करते हैं जहां तक कोई व्यभिचार, दोष नहीं पा सके । इस वें सूत्रमें भाववेद पुरुष का ग्रहण तो माना जायगा क्योंकि मनुष्य-पुरुष की विवक्षा का विधायक सूत्र है परन्तु वह द्रव्य से भी मनुष्य (पुरुष) ही होगा. ऐसा मानने में कोन सा प्रमाण अनिवार्य हो जाता है। जबकि भाववेद पक्ष में विषम भी द्रव्य शरीर होता है। तब द्रव्य खो शरीर और भाववेद मनुष्य मानने में भी कोई रुकावट किसी प्रमाण से नहीं पाती है। वैसी दशा में द्रव्य बो की अपर्याप्त भवस्था में भी चौथा गुणस्थान सिद्ध होगा इस बात का समाधान भाववेदी विद्वान क्या दे सकते हैं। ___ भाववेदी विद्वानों के मत और कहने के अनुसार यदि दवें सुत्र को भाववेद और द्रव्यवेद दोनों से पुरुग्वेद का निरूपक ही माना आयगा तो उसकी अपर्याप्त अवस्था में सयोग केवनीतेरहवां गुणस्थान भी सिद्ध होगा। जिस प्रकार पालापाविचार में अपर्याप्त मानुषी के पहला दूसरा और तेरहवां ये तीन गुणस्थान बताये गये हैं उसी प्रकार यहां पर भी होंगे। भाववेद का बन उनके मन से दोनों स्थानों में समान है।