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भी पर्याप्ति अपर्याप्ति पर पड़े हुए हैं। उन पदों से सन मनुष्यों के द्रव्य शरीरसी पूर्णता अपूर्णता का ग्रहण और उन अवस्वानों में सम्व त गुणस्थानोंका विधान बताया जा चुका है।
पहा १२ और ६३६ सत्रों में मानुषो के साथ पर्याप्ति मपबांति पद जुड़े हुए है इस लिये इन सूत्रों द्वारा पर्याप्त नाम कम के सदय तथा षट पत्तियों एवं शरीररचनाको पुरता अपूर्णता का सम्बन्ध और समन्बय मानुषी के साथ ही होगा, मनुष्य के साय नहीं हो सकता है।
मानुषी का वाच्यार्य "मानुषी शब्द मावली में भी माता और द्रव्यत्री में भी पाता है।" मानुषी शब्द के दोनों ही वाच्यार्य होते हैं। इस बात को सभी भाव पक्षी विद्वान स्वीकार करते हैं। परन्तु इन १२ और ३ ३ सत्रों में मानुपी शन का वाच्य-अर्थ केवल द्रव्यत्री ही लिया गया है, क्योंकि मानुषी १६ के साथ पर्याप्ति अपर्याप्ति पद भी जुड़े हुए हैं, वे द्रव्य शरीर की रचना पोर उसकी पूर्णता अपूर्णता के हो विधायक है क्योंकि यह योगमार्गणा का प्रकरण है बता द्रव्य शरीर को छोड़ कर मावस्त्री का पहण नही होता है, और द्रव्य मनुष्य का विधान सत्र ८t, t०, ११ इन तीन सत्रों द्वारा किया जा चुका है मतः इन १२.६३ वें सत्रों में भनुष्य द्रव्य शरीर के साथ भावली का महण कदापि सिद्ध नहीं हो सकता है। इस लिये सब प्रकार से एक सूत्रों के पदों पर