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श्री सिद्धचक्र विधान'
द्वारपती भूपति के ताई, रोक रहै देखन दे नाहीं। सोई दर्शनावरण विनाशो, नमों सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो॥ ___ ॐ ह्रीं सकलदर्शनावरणकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अध्यं ॥७॥ मूर्तीक पद को प्रतिभासन, नेत्र द्वार होवै परकाशन। चक्षु दर्शनावरण विनाशो, नमों सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो॥ . ____ॐ ह्रीं चक्षुदर्शनावरणकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥८॥ दृगबिन अन्य इन्द्री मन द्वारे, वस्तुरूप सामान्य उधारे। अदृग दर्शनावरण विनाशो, नमों सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो॥ ___ ॐ ह्रीं अचक्षुदर्शनावरणकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥९॥ देशकाल द्रव भाव प्रमानं, अवधि दर्श होवे सब ठानं। अवधि दर्शनावरण विनाशो, नमों सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो॥
ॐ ह्रीं अवधिदर्शनावरणरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१०॥ बिनमर्यादसकल तिहुँकाल, होय प्रगट घटपट थिति हाल। केवल दर्शनावरण विनाशो, नमों सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो॥ __ॐ हीं केवलदर्शनावरणरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥११॥ बैठे खड़े पड़े घुम्मरिया, देखे नहीं निद्रा की बिरिया। निद्रा दर्शनावरण विनाशो, नमों सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो॥
ॐ ह्रीं निद्राकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१२॥ सावधान कितनी की जावे, रञ्च नेत्र उघड़न नहीं पावे। निद्रा-निद्रा कर्म विनाशो, नमों सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो॥
ॐ ह्रीं निद्रानिद्राकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अध्यं ॥१३॥ . मन्दरूप निद्रा का आना, अवलोकै जाग्रतहि समाना। प्रचला दर्शनावरण विनाशो, नमों सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो॥
ॐ ह्रीं प्रचलाकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१४॥