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श्री सिद्धचक्र विधान
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कर्माष्ट बिन त्रैलोक्य पूज्य अछेद शिव कमलापती, मुनि ध्येय सेय अमेय चाहूँ, गेय धो हम शुभमती॥ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धचक्राधिपतये समत्तणाणादि अट्ठगुणाणं पूणाघ। मिथ्यातम कारण दुःखकारा, नित्य निरन्तर विधि संसारा। तिसहनिसमरथ अतिशयरूपा, केवलपायन{शिव भूपा॥
ॐ ह्रीं चिरतरसंसारकारणज्ञाननिद्धतोद्भूत केवलज्ञानातिशयसम्पन्नाय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१॥ मन इन्द्रिय निमित्त मति ज्ञाना, योग देश तिष्ठत पद.जाना। क्षय उपशम आवर्ण विनाशो, नमों सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो॥ __ ॐ ह्रीं अभिनिबोधवारकविनाशकाय सिद्धाधिपतये नमः अध्यं ॥२॥ द्वादश अंगरूप अज्ञाना, श्रुत आवरणी भेद बखाना। क्षय उपशम आवर्ण विनाशो, नमों सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो॥ ___ॐ ह्रीं द्वादशांगश्रुतावरणीकर्मविमुक्ताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥३॥ हैं असंख्य लोकावधि जेते, अवधिज्ञान के भेद सु तेते। क्षय उपशम आवर्ण विनाशो, नमों सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो॥
ॐ ह्रीं असंख्यभेदलोकअवधिज्ञानावरणीविमुक्ताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥४॥ हैं असंख्य परमान प्रमाना, मनपर्यय के भेद बखाना। क्षय उपशम आवर्ण विनाशो, नमों सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो॥ ॐ ह्रीं असंख्यप्रकारमनःपर्ययज्ञानावरणीकर्मविमुक्ताय सिद्धधिपतये नमः अर्घ्यं ॥५॥ निखिल रूप गुणपर्यय ज्ञानं, सत स्वरूप प्रत्यक्ष प्रमानं। केवल आवर्णी विधि नाशो, नमों सिद्ध स्वज्ञान प्रकाशो॥ ॐ ह्रीं निखिलरूपगुणपर्यायबोधककेवलज्ञानावरणविमुक्ताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥६॥