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[८] फिर पवन कुमार जातिके देवोंको कहे और पुष्पक्षेपण करे। आयात मारुतसुराः पवनोद्भटाशाः, संघट्टसंलसितनिर्मलतांतरीक्षाः। वात्यादिदोषपरिभूतवसुन्धरायां प्रत्यूहकर्मनिखिलं परिमार्जयन्तु॥
हे पवन कुमार देवों! तुम अपनी उद्भट वायुके द्वारा दशों दिशाओं और आकाश तथा भूमिको निर्मल करनेवाले हो। हमारे इस यज्ञमें आऔ और वायु सम्बन्धी समस्त दोषोंको दूर करो। हमारे यज्ञ-सम्बन्धी विघ्नोंका नाश करों।
फिर वास्तुकुमार जातिके देवोंको कहे और पुष्पक्षेपण करें। आयात वास्तुविधिषूद्भटसन्निवेशा योग्यांशभागपरिपुष्टवपुः प्रदेशाः। अस्मिन्मखेरुचिरसुस्थिभूषणांकके सुस्थायथाहविधिना जिनभक्तिभाजः॥
हे वास्तुकुमार जातिके देवों! तुम अपने योग्य अंशको विभाग कर पुष्ट देह संयुक्त हमारे इस यज्ञ विधानमें सुन्दर भूषणोंसे सज्जित होकर जिनेन्द्रकी भक्तिपूर्वक पधारो, योग्य स्थानमें सन्निवेश कर तिष्ठो।
फिर मेघकुमार जातिके देवोंको कहे और पुष्पक्षेपण करे। आयात निर्मलनभःकृतसन्निवेशा मेघासुराः प्रमदभारनमच्छिरस्काः। अस्मिन्मखेविकृतविक्रिययानितान्तेसुस्थाभवन्तुजिनभक्तिमुदाहरन्तु॥
हे मेघकुमार जातिके देवों! तुम निर्मल आकाशके धारणहारे हमारे इस यज्ञ विधानमें आओ और अपनी विक्रिया ऋद्धि तथा आनन्दसे युक्त हो जिनेन्द्रकी भक्तिमें सावधान हो तिष्ठो और मेघ सम्बन्धी विघ्न दूर करो।
फिर अग्निकुमार देवोंको कहे और पुष्पक्षेपण करे। आयात पावकसुराः सुरराजपूज्य-संस्थापनाविधिषु संस्कृविक्रियाहर्हाः। स्थानेयथोचितकृतेपरिवद्धकक्षाःसन्तुश्रियंलभतपुण्यसमाजभाजां॥
हे अग्निकुमार जातिके देवों! यह इन्द्रों द्वारा पूज्य जिनेन्द्रका यज्ञ विधान है, इसमें तुम आओ। तुम अपनी संस्कार रूप क्रियाके योग्य