________________
[९] हो, अतः अपने योग्य स्थानमें कटिबद्ध होवो और इस पुण्यशाली समाजकी शोभा बढ़ाओ तथा अग्नि सम्बन्धी सभी विघ्न दूर करो।
फिर नागकुमार देवोंको कहे और पुष्पक्षेपण करे। नागा:समाविशतभूतलसंन्निवेशाःस्वां भक्तिमुल्लसितगात्रतयाप्रकाश्य। आशीविषादिकृतविघ्नविनाशहेतोः स्वास्था भवन्तु निजयोग्यमहासनेषु __ हे नागकुमार देवो! तुम यहां समावेश करो। तुम पृथ्वीतलमें रहनेवाले हो। तुम अपनी भक्तियुक्त विक्रियाको प्रकाशित करते हुए आशीविष (सर्प) कृत उपद्रवोंको दूर करो और अपने योग्य स्थान पर तिष्ठो।
फिर दशों दिक्पालोंके लिए पुष्पक्षेपण करे।।
यह श्लोक पढ़े और दशों दिशाओं में पुष्पक्षेपण करे। इन्द्राग्निदण्डधरनैर्ऋतपाशपाणि-वायूत्तरेण शशिमौलिफणीन्द्रचन्द्राः। आगत्ययूयमिहसानुचराःस्रचिह्नाःस्वंस्वंप्रतीच्छतबलिंजिनाभिषेके॥
ॐ इन्द्राय स्वाहा, ॐ अग्नये स्वाहा, ॐ यमाय स्वाहा, ॐ नैऋत्याय स्वाहा, ॐ वरुणाय स्वाहा, ॐ पवनाय स्वाहा, ॐ धनदाय स्वाहा, ॐ ईशानाय स्वाहा, ॐ धरणेन्द्राय स्वाहा, ॐ सोमाय स्वाहा। __ इसके बाद इस मण्डलकी वेदीमें जिन भगवानकी प्रतिमा बिराजमान करनी हो, उन्हें (भगवान को) पुरानी वेदीसे लाकर एक संदली पर बिराजमान करे और उपर्युक्त प्रासुक जलसे प्रभुका न्हवन करे। तब
यह आगे लिखा श्लोक पढ़े और भगवानके शीश पर जल धारा दे। . दूरावनम्रसुरनाथकिरीटकोटी-संलग्नरत्नकिरणच्छविधूसरांधिम्। प्रस्वेदतापमलमुक्तमपि प्रकृष्टै भक्त्या जलैजिनपति बहुधाभिषिचे॥ ____ॐ ह्रीं श्रीमंतं भगवन्तं कृपालसन्तं वृषभादिमहावीरपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थङ्कर परमदेवाभिषेकर ममे आद्यानां आद्ये जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे आर्यखण्डे..... देशे..... नाम्नि नगरे..... श्रीशुभसम्वत्सरे..... सम्वत्सरे.....