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[१०] मासानामुत्तमे..... मासे..... पक्षे..... पर्वणि..... शुभदिने मुनिआर्यिकाश्रावकश्राविकाणां सकलकर्म क्षयार्थ जलेनाभिषिचे नमः। . . ___यह पढ़ता हुआ भगवानके सिर पर जल धारा दे-मङ्गल बोलने हों तो बोले, अगर विशेष शान्तिधारा देनी हो तो अन्यत्र है, वहाँ से पढ़े। फिर भगवानको वेदीमें बिराजमान करे।
इसके बाद सिद्ध यन्त्रका प्रक्षाल करे, तब यह मन्त्र पढे। "ॐ भूर्भुवः स्वरिह एतद्विघ्नोघवारकं यन्त्रमहं परिषिंचयामि।"
इस प्रकार न्हवन करके यंत्रको मांडलेके सिंहासन पर बिराजमान कर दे। इसके बाद जप स्थानमें जाकर आचार्यके दिये हुए निम्नलिखत मंत्रमें से किसी एक मंत्रकी एक-एक या दो-दो मालायें फेरे।
_ 'ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं हः असिआउसा सर्वशांति कुरु कुरु स्वाहा' अथवा 'ॐ ह्रीं अर्ह असिआउसा नमः।' फिर भगवानके सामने नित्य पूजायें तथा पाठका आरंभ करे, तब वह श्लोक पढ़कर भगवानसे प्रार्थना करे-- श्रीमन्मंदर मस्तके शुचिजलैधोंतेसदर्भाक्षते,
पीठे मुक्तिवरंनिधाय रचितंत्वत्वादपुष्पस्त्रजं। इन्द्रोहं. निज भूषणार्थममलं यज्ञोपवीतं दधे,
मुद्राकंकणशेखरानपि तथा जैनाभिषेकोत्सवे॥ हे भगवान! मैं शुद्ध जलसे प्रक्षालन किये हुए और दर्भ अक्षत आदिसे सुशोभित तथा मेरु पर्वतके समान पवित्र सिंहासन पर आप (भगवान अर्हन्तदेव) को स्थापित करता हूँ तथा आपके चरणकमलोंकी पवित्र मालाको धारण कर अपने में इंद्रकी कल्पना करता हूँ। आपका अभिषेक करने के समय इंद्रके समान अपने शरीरको सुशोभित करने के लिए मुकुट, कंकण, कुण्डल, यज्ञोपवीत, तिलक आदि सब आभूषण धारण करता हूँ। पश्चात् नित्य नियम, पञ्चमेरु, नन्दीश्वर आदि तथा वेदीमें