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कुण्डल धारण एकत्र भास्वानपरत्र सोमः सेवां विधातुं जिनपश्य भक्त्या। रूपं परावृत्य च कुण्डलस्य मिषादवाप्ते इव कुण्डले द्वै॥ ॐ ह्रीं कुण्डल अवधारयामि स्वाहा।
हार धारण मुक्तावलीगोस्तनचन्द्रमाला-विभूषणान्युत्तमनाकभाजां। यथार्ह संसर्गगतानि यज्ञलक्ष्मीसमालिंगनकृ धेऽहम् ॥ ॐ ह्रीं हारं अवधारयामि स्वाहा।
__ भूमि शुद्धि विधान ॐ ह्रीं वायुकुमासय सर्वविघ्नविनाशाय महीं पूतां कुरु कुरु हूँ फट स्वाहा। . इसके बाद डाभ पूले को जलमें भिगो कर भूमि पर छिड़के तब यह श्लोक मन्त्र पढ़ेये सन्ति केचिदिहि दिव्यकुलप्रसूता नागाः प्रभूतबलदर्पयुता विबोधा। संरक्षणार्थममृतेनशुभेन तेषांप्रक्षालयामिपुरतःस्नपनस्थ(जपनस्य) भूमिम्
ॐ झाँ झी झू झौं झः ॐ ह्रीं मेघकुमाराय धरां प्रक्षालय अं हं तं पं स्वं झं झं यं क्षः फट् स्वाहा। ___ इसके बाद मण्डप रक्षार्थ चार प्रकार के देव तथा दिक्पालोंको आह्वान और पुष्पक्षेपण करे। चतुर्णिकायामरसंघ एष आगत्य यज्ञे विधिना नियोगम्। स्वीकृत्य भक्त्याहि यथार्हदेशे सुस्था भवंत्वाह्निककल्पनायाम्॥
हे जिन-भक्त चतुर्णिकाय देवों। तुम हमारे इस यज्ञमें पधार कर यथायोग्य विधिपूर्वक अपने नियोगको अङ्गीकार कर तिष्ठो और अपनी लिन-भक्ति रूप सेवामें सावधान होवो। (यह पढ़ कर पुष्पक्षेपण करे)