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________________ श्री सिद्धचक्र विधान [६७ लोभी तन आरम्भ में, आनन्द रीति मेंट। नमूं सिद्ध पद पाइयो, निज आतम गुण श्रेष्ठ॥ ॐ ह्रीं नानुमोदितकायलोभारम्भआत्मसिद्धाय नमः अध्यं ॥१३०॥ जेते कुछ पुद्गल परमाणु शब्दरूप, __ भये हैं अतीत काल आगे होनहार हैं। तिनको अनन्त गुण करत अनन्तवार, ऐसे महाराशि रूप धरै विसतार हैं। सबही एकत्र होय सिद्ध परमातम के, - मानो गुण गण उच्चरन अर्थ धार हैं। तो भी इक समय के अनन्त भाग आनन्द को कंहत न, .. कहैं हम कौन परकार हैं। . ॐ ह्रीं अष्टाविंशत्यधिकशतगुणयुक्तसिद्धेभ्यो नमः अयं ॥ जयमाला - दोहा शिवगुण सरधा धार उर, भक्ति भाव है सार। केवल निज आनन्द करि, करूँ सुजस उच्चार॥ .. पद्धडि छन्द जय मदन कदन मन मरण नाश, . जय शान्तिरूप निज सुख विलास। जय कपट सुभट पट हरन सूर, जम लोभ क्षोभ मद दम्भ चूर ॥१॥ पर-परणति सों अत्यन्त भिन्न, निज परिणति सों अति ही अभिन्न।
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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