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श्री सिद्धचक्र विधान
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लोभी तन आरम्भ में, आनन्द रीति मेंट। नमूं सिद्ध पद पाइयो, निज आतम गुण श्रेष्ठ॥ ॐ ह्रीं नानुमोदितकायलोभारम्भआत्मसिद्धाय नमः अध्यं ॥१३०॥ जेते कुछ पुद्गल परमाणु शब्दरूप,
__ भये हैं अतीत काल आगे होनहार हैं। तिनको अनन्त गुण करत अनन्तवार,
ऐसे महाराशि रूप धरै विसतार हैं। सबही एकत्र होय सिद्ध परमातम के,
- मानो गुण गण उच्चरन अर्थ धार हैं। तो भी इक समय के अनन्त भाग आनन्द को कंहत न,
.. कहैं हम कौन परकार हैं। . ॐ ह्रीं अष्टाविंशत्यधिकशतगुणयुक्तसिद्धेभ्यो नमः अयं ॥
जयमाला - दोहा शिवगुण सरधा धार उर, भक्ति भाव है सार। केवल निज आनन्द करि, करूँ सुजस उच्चार॥
.. पद्धडि छन्द जय मदन कदन मन मरण नाश, . जय शान्तिरूप निज सुख विलास। जय कपट सुभट पट हरन सूर,
जम लोभ क्षोभ मद दम्भ चूर ॥१॥ पर-परणति सों अत्यन्त भिन्न,
निज परिणति सों अति ही अभिन्न।