________________
श्री सिद्धचक्र विधान
[५१
भुजङ्गप्रयात छन्द समारम्भ क्रोधीमनोयोगमाही,धरेंमोदनाभावकोजीवताही। भयेआपसंतुष्ट येत्यागभावा, नमूंसिद्धसोदोषनाहींउपावा॥ ॐ ह्रीं नानुमोदितमनःक्रोधसमारम्भपरमानन्दसन्तुष्टाय नमः अर्घ्यं ॥२८॥
पद्धड़ी छन्द निजक्रोधितमन आरम्भठान,जगजियदुःखमें सुखरहमान। सोआप त्यागसंक्लेशभाव, भये सिद्ध नमूंधर हिये चाव॥ ___ॐ ह्रीं अकृतमनःक्रोधारम्भस्वसंस्थानाय नमः अर्घ्यं ॥२९॥ क्रोधित मनसों आरम्भहेत, पर-प्रेरित निजअपराधलेत। जगजीवनकी विपरीत रीति, तुमत्याग भये शिववर पुनीत ॥ -- ॐ ह्रीं अकारितमन:क्रोधारम्भबन्धनसंस्थानाय नमः अर्घ्यं ॥३०॥ क्रोधितमनसों आरम्भदेख, जिसमानव हैं आनन्द विशेख। तुम सत्य सुखी इह भाव टार, भये सिद्ध नमूं उर हर्ष धार॥ ... ॐ ह्रीं नानुमोदितमन:क्रोधारम्भसंस्थानाय नमः अर्घ्यं ॥३१॥
दोहा मन योग मनरम्भ में, वरतत हैं जगजीव। भये.सिद्ध संक्लेश तजि, तिन पद नमूं सदीव॥
ॐ ह्रीं अकृतमनोमानसंरम्भसाधर्माय नमः अर्घ्यं ॥३२॥ मान उदय मन योगरौं, पर को रम्भ करान। त्याग भये परमातमा, नमूं शरण पर हान॥ ॐ ह्रीं अकारितमनोमानसंरम्भअनन्यशरणाय नमः अर्घ्यं ॥३३॥ मान सहित मन रम्भ में, जगजिय राखै चाव। नमो सिद्ध परमातमा, जिन त्यागो यह मा ॐ ह्रीं नानुमोदितमनोमानसंरम्भसुगुणभावाय नमः ॥३४॥