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श्री सिद्धचक्र विधान
अति अरस चरू क्षीर होयकर धरत ही,
वचन खिरतपर श्रवण तुष्टता करत ही। क्षीरस्त्रवी यह ऋद्धि भई सुखदाय जू,
भये सिद्ध सुखदाय जजू तिन पांय जू॥४०॥
ॐ ह्रीं अहँ क्षीरस्रावीरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥४०॥ रूखे भोजन से कर में घृत रस स्रवै,
वचन सुनत परको घृत सम्वादित हवै। घृतस्त्रावी यह ऋद्धि भई सुखदाय जू,
भये सिद्ध सुखदाय जजू तिन पांच जू॥४१॥
ॐ ह्रीं अहँ घृतस्त्रावीऋद्धिजिनसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥४१ ।। हस्तकमल अन्न मधुर रस देत हैं, .
मधुकर सम जिय वचन गंगको लेत हैं। मधुस्रावी यह ऋद्धि भई सुखदाय जू,
भये सिद्ध सुखदाय जजू तिन पांय जू॥४२॥ ॐ ह्रीं अहँ मधुस्रावीऋद्धिजिनसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥४२ ।। अमृतसम आहार होय कर आयके,
वचनामृत दे सुक्ख श्रवण में जायके। आमियरस यह ऋद्धि भई सुखदाय जू, . भये सिद्ध सुखदाय जजू तिन पांय जू॥४३॥ ॐ ह्रीं अर्ह अमृतरसऋद्धिजिनसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥४३॥