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श्री सिद्धचक्र विधान
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हस्त पादादिक नखकेश में,
सर्व औषधि हैं सब देश में। औषधी यह ऋद्धि प्रभावना,
भये सिद्ध नमत सुख पावना॥३६॥ ॐ ह्रीं अर्ह सर्वोसियऔषधिरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अयं ॥३६ ।।
__ अडिल्ल मन सम्बन्धी वीर्य बढ़े अतिशय महा,
एक महूरत अन्तर श्रुत चिंतन लहा। मनोबली यह ऋद्धि भई सुखदाइ जू,
भये सिद्ध सुखदाय जजू तिन पायजू॥३७॥
ॐ ह्रीं अहँ मनोबलीरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥३७॥ भिन्न-भिन्न अति सुद्ध उच्च स्वर उच्चरै, __ एक महूरत अन्तर श्रुत वर्णन करें। वचनबली यह ऋद्धि भई सुखदाय जू,
भये सिद्ध सुखदाय जजू तिन पांय जू॥३८॥
ॐ ह्रीं अर्ह वचनबलरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥३८॥ खड्गासन इक अंग मासछै मास लों, - अचलरूप थिर हैं छिनक खेदित न हों। कायबली यह ऋद्धि भई सुखदाय जू,
भये सिद्ध सुखदाय जजू तिन पांय जू॥३९॥ ॐ ह्रीं अर्ह कायबलरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अयं ॥३९॥