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श्री सिद्धचक्र विधान
शेष जिन वर्णन करि थकि रहैं,
नमूं सिद्ध महापद को लहैं ॥३१॥ ॐ ह्रीं अर्ह घोरगुणवरिक्रमाणरिद्धि नमः अर्घ्यं ॥३१॥ अतुल वीर्य धनी हन काम को,
चलत मन न लखत सुर बाम को। .. बालबह्मचारी योगीश्वरा,
नमूं सिद्ध भये वसुविधि हरा॥३२॥ ॐ ह्रीं अर्ह ब्रह्मचर्यरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥३२॥ सकल रोग मिटै संस्पर्शते,
महायतीश्वर के आमर्शतें। औषधी यह ऋद्धि प्रभावना,
. भये सिद्ध नमत सुख पावना॥३३॥ ____ ॐ ह्रीं अहँ आमर्षरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥३३॥ मूत्र में अमृत अतिशय वसै,
जा परसते सब व्याधि नसै। औषधी यह ऋद्धि प्रभावना,
भये सिद्ध नमत सुख पावना ॥३४॥ ॐ ह्रीं अहँ आमोसियऔषधिरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥३४॥ तन पसीजत जलकन लगत ही,
रोग व्याधि सर्व जन भगत ही। औषधी यह ऋद्धि प्रभावना,
भये सिद्ध नमत सुध पावना ॥३५॥ ॐ ह्रीं अहँ जलोसियरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥३५॥