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श्री सिद्धचक्र विधान
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सम्यग्दर्शन है तुम बैन, वस्तु परीक्षा भाषो ऐन। सिद्धसमूह जर्जे मनलाय, भव भव में सुख सम्पति दाय॥
ॐ ह्रीं अहं सम्यग्दर्शनरूपजिनाय नमः अध्यं ॥३३॥ धर्मशास्त्र के हो कर्तार, आदि पुरुष धारो अवतार। सिद्धसमूह जजूं मनलाय, भव भव में सुख सम्पति दाय॥
____ॐ ह्रीं अहं आदिपुरुषजिनाय नमः अध्यं ॥८३४॥ नय साधत नैयायक नाम, सो तुम पक्ष धरो अभिराम। सिद्धसमूह जर्जे मनलाय, भव भव में सुख सम्पति दाय॥
___ॐ हीं अहं पञ्चविंशतितत्त्ववेत्रे नमः अध्यं ॥८३५॥ स्वपर चतुष्क वस्तु को भेव, व्यक्ताव्यक्त करो निरखेद। सिद्धसमूह जर्जे मनलाय, भव भव में सुख सम्पति दाय॥ - ॐ ह्रीं अर्ह व्यक्ताव्यक्तज्ञानविदे नमः अयं ॥८३६॥ दर्शन ज्ञान भेद उपयोग, चेतनता मय है शुभ योग। सिद्धसमूह जर्जे मनलाय, भव भव में सुख सम्पति दाय॥ - ॐ ह्रीं अहँ ज्ञानचैतन्यभेददृशे नमः अध्यं ॥८३७॥ स्वैसंवेदन शुद्ध धराय, अन्य जीव हैं मलिन कुभाय। सिद्धसमूह जर्जे मनलाय, भव भव में सुख सम्पति दाय॥
ॐ ह्रीं अहं स्वसंवेदनज्ञानवादिने नमः अयं ॥८३८॥ द्वादश सभा करै सतकार, आदर योग बैन सुखकार। सिद्धसमूह जजूं मनलाय, भव भव में सुख सम्पति दाय॥ ___ॐ ह्रीं अहं समवशरणद्वादशसभापतये नमः अयं ॥८३९॥ आगम अक्ष अनक्ष प्रमान, तीन भेद कर तुम पहचान। सिद्धसमूह जर्जे मनलाय, भव भव में सुख सम्पति दाय॥
ॐ ह्रीं अहं त्रिप्रमाणाय नमः अयं ॥८४० ॥