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श्री सिद्धचक्र विधान
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श्रेष्ठ करै कल्याण सु ज्ञान, सम्पूरण सङ्कल्प निशान। सिद्धसमूह जर्जे मनलाय, भव भव में सुख सम्पति दाय॥
ॐ ह्रीं अर्ह श्रेष्ठकल्याणकारकजिनाय नमः अर्घ्यं ॥८०१॥ निज ऐश्वर्य धरो सम्पूर्ण, पर विभूति बिन हो अघ चूर्ण। सिद्धसमूह जगूं मनलाय, भव भव में सुख सम्पति दाय॥
ॐ ह्रीं अर्ह परमेश्वरीयसम्पन्नाय नमः अर्घ्यं ॥८०२॥ श्रेष्ठ शुद्ध परब्रह्म रमाय, मंगलमय पर मंगलदाय। सिद्धसमूह जर्जे मनलाय, भव भव में सुख सम्पति दाय॥
. ॐ ह्रीं अहँ परब्रह्मणे नमः अर्घ्यं ॥८०३॥ श्री जिनराज कर्म रिपु जीत, पूजनीक हैं सब के मीत। सिद्धसमूह जजूं मनलाय, भव भव में सुख सम्पतिं दाय॥
- ॐ ह्रीं अहँ कर्मारिजिते नमः अर्घ्यं ॥८०४॥ षट् पदार्थ नव तत्त्व कहाय, धर्म अधर्म भली विधि गाय। सिद्धसमूह जर्जे मनलाय, भव भव में सुख सम्पति दाय॥
. ॐ ह्रीं अर्ह सर्वशास्त्रज्ञजिनाय नमः अयं ॥८०५॥ है शुभलक्षणमय परिणाम, पर उपाधिको नहिं कछु काम। सिद्धसमूह जर्जे मनलाय, भव भव में सुख सम्पति दाय॥ . ॐ ह्रीं अहँ शुभलक्षणजिनाय नमः अर्घ्यं ॥८०६॥ सत्य ज्ञानमय है तुम बोध, हेय अहेय बतायो सोध। सिद्धसमूह जर्जे मनलाय, भव भव में सुख सम्पति दाय॥
ॐ ह्रीं अहँ सर्वबोधसत्त्वाय नमः अर्घ्यं ॥८०७॥ इष्टानिष्ट न राग न द्वेष, ज्ञाता दृष्टा हो अविशेष। सिद्धसमूह जर्जे मनलाय, भव भव में सुख सम्पति दाय॥
ॐ ह्रीं अहँ निर्विकल्पाय नमः अर्घ्यं ॥८०८॥