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श्री सिद्धचक्र विधान
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धन सम गर्जत वचन हैं, भागे कुनय कुवादि। प्रबल प्रचण्ड सुवीर्य है, धरै सुगुण इत्यादि।
ॐ ह्रीं अहँ बृहद्भावाय नमः अर्घ्यं ॥७७० ॥ पाप सघन वन दाह दव, महादेव शिव नाम। अतुल प्रभा धारी महा, तुम पद करूँ प्रणाम।
__ॐ ह्रीं अहँ चित्रभानवे नमः अर्घ्यं ॥७७१॥ तुम अजन्म बिन मृत्यु हो, सदा रहो अविकार। ज्योंके त्यों मणि दीप सम, पूजत हूँ धन धार॥ __ॐ ह्रीं अहँ अजरामरजिनाय नमः अर्घ्यं ॥७७२ ॥ संस्करादि स्वगुण सहित, तिन करि हो आराध्य। तुम को बन्दों भावसों, मिटे सकल दुःख व्याध॥
ॐ ह्रीं अहं द्विजाराध्याय नमः अर्घ्यं ७७३ ॥ निज आतम निज ज्ञान है, तामें रुचि परतीत। पर पद सोहै अरुचिता, आई अक्षय जीत॥
ॐ ह्रीं अहँ सुधाशोचिषे नमः अयं ७७४॥ जन्म-मरण को आदि ले, सकल रोग को नाश। दिव्य औषधि तुम धरो, अमर करन सुखरास॥
ॐ ह्रीं अर्ह औषधीशाय नमः अर्घ्यं ।७७५ ॥ पूरण गुण परकाश कर, ज्यों शशि किरण उद्योत। मिथ्या तप निरवारतै, दर्शत आनन्द होत॥
ॐ ह्रीं अहँ कमलानिधये नमः अर्घ्यं ।७७६ ॥ सूर्य प्रकाश धरै सही, धर्म मार्ग दिखलाय। चार संघ नायक प्रभू, वन्, तिनके पाय॥ .. ॐ ह्रीं अर्ह नक्षत्रनाथाय नमः अर्घ्यं ।।७७७॥