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श्री सिद्धचक्र विधान
सुन्दर रूप मनोज्ञ है, मुनिजन मन वशंकार। असाधारण शुभ अणु लगै, केवलज्ञान मॅझार॥
___ ॐ ह्रीं अहँ कामदेवाय नमः अर्घ्यं ॥७४६ ॥ सम्दर्शन ज्ञान अरु, चारित एक सरूप। धर्म मार्ग दरशात हैं, लोकत रूप अनूप ॥
ॐ ह्रीं अहँ त्रिलोचनाय नमः अर्घ्यं ॥७४७॥ निजानन्द स्व लक्ष्मी, ताके हो भरतार । शिव कामिन नित भोगते, परमरूप सुखकार॥
ॐ ह्रीं अहँ उमापतये नमः अर्घ्यं ॥७४८॥ जे अज्ञानी जीव हैं, नित प्रति बोध करान। रक्षक हो षट् काय के, तुम सम कौन महान॥
ॐ ह्रीं अहँ पशुपतये नमः अर्घ्यं ७४९ ॥ रमण भाव निज शक्ति सों, धरै तथा दुति काम। कामदेव तुम नाम है, महाशक्ति बल धाम॥
ॐ ह्रीं अहँ शम्बरारये नमः अर्घ्यं ॥७५० ॥ कामदाह को दम कियो, ज्यों अगनी जलधार। निज आतम आचरण नित, महाशील श्रिय सार॥
ॐ ह्रीं अहँ त्रुिपरान्तकाय नमः अर्घ्यं ।७५१ ॥ निज सन्मति शुभ नारसों, मिले रहे अरधांग। ईश्वर हो परमातमा, तुम्हें नमूं सर्वांग॥
ॐ ह्रीं अहँ अर्द्धनारीश्वराय नमः अर्घ्यं ॥७५२॥ नहीं चिगे उपयोग से, महा कठिन परिणाम। महावीर्य धारक नमूं, तुम को आठो याम॥
ॐ ह्रीं अहँ रुद्राय नमः अर्घ्यं ॥७५३ ॥