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श्री सिद्धचक्र विधान
रत्नत्रय पुरुषार्थ करि, हो प्रसिद्ध जयवन्त। कर्मशत्रु को क्षय कियो, शीश नमें नित सन्त॥
ॐ ह्रीं अहं त्रिविक्रमाय नमः अयं ॥७१४॥ सूरज हो शिवराह के, कर्म दलन बल सूर। संशयकेतु न ग्रहण ग्रस, महासहज सुखपूर ॥ ॐ ह्रीं अहँ मोक्षमार्गप्रकाशकआदित्यरूपजिनाय नमः अर्घ्यं ॥७१५ ॥
सुभग अनन्त चतुष्ट पद, सोई लक्ष्मी भोग। स्वामी हो शिवनारि के, नमूं जोरि तिहुँ योग।
ॐ ह्रीं अहँ श्रीपतये नमः अर्घ्य ७१६॥ इन्द्रादिक पूजत जिन्हैं, पञ्चकल्याणक थाप। अद्भुत पराक्रम को धरै, नमत नसैं भव पाप॥
ॐ ह्रीं अहँ पुरुषोत्तमाय नमः अर्घ्यं ॥७१७॥ निज प्रदेश में बसत हैं, परमातम को वास। आप मोक्ष के नाथ हो, आपहि मोक्ष निवास॥ . ॐ ह्रीं अर्ह वैकुण्ठाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥७१८ ॥ सर्व लोक कल्याणकर, विष्णु नाम भगवान। श्री अरहन्त स्वलक्ष्मी, ताके भरता जान॥
ॐ ह्रीं अहं सर्वलोकश्रेयस्करजिनाय नमः अर्घ्यं ७१९ ॥ मुनिमन कुमुदनि मोदकर, भव सन्ताप विनाश। पूरण चन्द्र त्रिलोक में, पूरण प्रभा प्रकाश॥
पूरण चन्द्र
हृषीकेशाय नम हो देवन के
दिनकर सम परकाश कर, हो देवन के देव। ब्रह्मा विष्णु कहात हो, शशि सम दुति स्वयमेव॥
ॐ ह्रीं अहँ हरये नमः अर्घ्यं ॥७२१ ॥