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श्री सिद्धचक्र विधान
मायाचार न शल्य है, शुद्ध सरल परिणाम। ज्ञानानन्द स्वलक्षमी, भोगत हैं अभिराम ॥
ॐ ह्रीं अहँ भद्राय नमः अयं ॥६१८॥ शील स्वभाव सु जन्म लै, अन्त समय निरवाण। भविजन आनन्दकार हैं, सर्व कलुषता हान॥
ॐ ह्रीं अहँ शान्तिजिनाय नमः अयं ॥६१९ ॥ धरम रूप अवतार हो, लोक पाप को भार। मृतक स्थल पहुँचाइयो, सुलभ कियो सुखकार॥
___ॐ हीं अर्ह वृषभाय नमः अध्यं ॥६२०॥ . . अन्तर बाहिर शत्रु को, निमिष परै नहिं जोर। विजय लक्षमी नाथ हो, पूजू द्वय कर जोर॥
ॐ ह्रीं अहँ अजिताय नमः अर्घ्यं ॥६२१॥ . तीनलोक आनन्द हो, श्रेष्ठ जन्म तुम होत। स्वर्ग मोक्ष दातार हो, पावत नहीं कुमोत ॥
ॐ ह्रीं अर्ह संभवाय नमः अयं ॥६२२॥ परम सुखी तुम आप हो, पर आनन्द कराय। तुमको पूजत भावसों, मोक्ष लक्षमी पाय॥
ॐ ह्रीं अर्ह अभिनन्दनाय नमः अर्घ्यं ॥६२३ ॥ सब कुवादि एकान्त को, नाश कियो छिन माहिं। भविजन मन संशय हरण, और लोक में नाहिं।
ॐ ह्रीं अहँ सुमतये नमः अर्घ्यं ॥६२४॥ भविजन मधुकर कमल हो, धरत सुगन्ध अपार। तीनलोक में विस्तरी, सुयश नाम की धार॥
ॐ हीं अहँ पद्मप्रभाय नमः अर्घ्यं ॥६२५ ॥