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श्री सिद्धचक्र विधान
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पारस लोहा हेम करि, तुम भव बन्ध निवार। मोक्ष हेतु तुम श्रेष्ठ गुण, धारत हो हितकार॥
ॐ ह्रीं अहं सुपार्थाय नमः अयं ॥६२६ ॥ तीन लोक आताप हर, मुनि मन मोदन चन्द। लोकप्रिय अवतार हो, पाऊँ सुख तुम बन्द॥
ॐ ह्रीं अहँ चन्द्रप्रभाय नमः अयं ॥२७॥ मन मोहन सोहन महा, धाएँ रूप अनूप। दरशत मन आनन्द हो, पायो निज रस कूप॥
ॐ ह्रीं अहं पुष्पदन्ताय नमः अयं ॥६२८॥ भव भव दाह निवार कर, शीतल भए जिनेश। मानो अमृत सींचियो, पूजत सदा सुरेश। ... ॐ ह्रीं अहं शीतलनाथाय नमः अयं ॥६२९॥ तीर्थङ्कर श्रेयांस हम, देहो श्री शुभ भाग। श्री सु अनन्त चतुष्ट हो, और सकल दुरभाग।
ॐ ह्रीं अर्ह श्रेयांशनाथाय नमः अयं ॥६३०॥ त्रस नाड़ी या लोक में, तुम ही पूज्य प्रधान। तुमको पूजत भावसों, पाऊँ सुख निरवाण॥
ॐ ह्रीं अहं वासपूज्याय नमः अध्यं ॥६३१॥ द्रव्य भाव मल रहित हैं, महा मुनिन के नाथ। इन्द्रादिक पूजत सदा, नमूं पदाम्बुज माथ॥ __ ॐ हीं अहँ विमलनाथाय नमः अयं ॥६३२॥ जाको पार न पाइयो, गणधर और सुरेश। थकित रहे असमर्थ करि, प्रणमें सन्त हमेश।
ॐ ह्रीं अहँ अनन्तनाथाय नमः अयं ॥६३३ ॥