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श्री सिद्धचक्र विधान
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रोग शोक भय आदि बिन, राजत नित आनन्द। खेद रहित रति अरति बिन, विकसत पूरणचन्द्र॥
ॐ ह्रीं अहँ परमोत्साहजिनाय नमः अर्घ्यं ॥६१०॥ जो गुण शक्ति अनन्त है, ते सब ज्ञान मझार। एक मिष्ट आकृति विविध, सोहत हैं अविकार॥
ह्रीं अहँ ज्ञानाय नमः अयं ॥६११॥ परम पूज्य परधान हैं, पर शक्ति आधार। परम पुरुष परमातमा, परमेश्वर सुखकार ॥
ॐ ह्रीं अहँ परमेश्वराय नमः अयं ॥६१२॥ दोष अपोष अरोष हो, सम तन्तोष अलोष। पञ्च परमपद धारियत, भविजन को परिपोष॥
ॐ ह्रीं अर्ह विमलेशाय नमः अर्घ्यं ॥६१३॥ पञ्चकल्याणक युक्त हैं, समोशरण ले आदि। इन्द्रादिक नित करत हैं, तुम गुण गण अनुवाद।
1 ॐ ह्रीं अहँ यशोधराय नमः अर्घ्यं ॥६१४॥ कृष्ण नाम तीर्थेश हैं, भावी काल कहाय। सुमति .गोपियन संग रमत, निज लीला दर्शाय॥
ॐ ह्रीं अहँ कृष्णाय नमः अयं ॥६१५॥ सम्यग्ज्ञान समाधि धर, मिथ्या मोह निवार। परहितकर उपदेश है, निश्चय नय व्यवहार ॥
ॐ ह्रीं अहँ ज्ञानमतये नमः अध्यं ॥६१६॥ वीतराग सर्वज्ञ हैं, उपदेशक हितकार। सत्यारथ परमाण कर, अन्य सुमति दातार ॥
ॐ ह्रीं अहँ शुद्धमतये नमः अयं ॥६१७॥