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________________ २६२] श्री सिद्धचक्र विधान द्रव्य भाव दऊ वेद बिन, स्वातम रति सुख मान। पर आलिंगन रतिकरण, निरइच्छुक भगवान॥ ॐ ह्रीं अर्ह अवेदाय नमः अयं ॥४९०॥ घातिरहित स्वपर दया, निजानन्द रसलीन। सुखसों अवगाहन करें, सन्त चरण आधीन॥ ___ॐ ह्रीं अर्ह प्रतिघाताय नमः अयं ॥४९१ ॥ निजानन्द स्व देश में, खण्ड-खण्ड नहीं होय। पूरण अविनाशी सुखी, पूजत हूँ भ्रम खोय॥ ॐ ह्रीं अहँ अछेद्याय नमः अयं ॥४९२॥ सिद्ध समान सु शुभ नहीं, और नाम विख्यात। कभू न जग में जन्म फिर, सोई दृढ़ कहलात॥ ॐ ह्रीं अर्ह दृढ़ीयसे नमः अयं ॥४९३ ॥ जन्म-मरण के कष्ट से, सर्व लोक भयवन्त। ताको नाश अभय करण, तुम्हें नमें जिय सन्त॥ ॐ ह्रीं अर्ह अभयङ्कराय नमः अर्घ्यं ॥४९४ ॥ ज्ञानानन्द स्व लक्षमी, भोगत हो निरखेद। महा भोग यातें भये, हैं स्वाधीन अवेद॥ ____ ॐ ह्रीं अर्ह महाभोगाय नमः अर्घ्यं ॥४९५ ॥ असाधारण असमान हो, सर्वोत्तम उतकृष्ट । परसों भिन्न अभिन्न हो, पायो पद अविनष्ट। ___ ॐ ह्रीं अहं निरौपम्याय नमः अयं ॥४९६ ॥ दश लक्षण शुभ धर्म के, राजसम्पदा भोग। नायक हो जिन-धर्म के, पूजि नमैं तिहूँ योग। ॐ ह्रीं अहँ धर्मसाम्राज्यनायकाय नमः अर्घ्यं ॥४९७ ॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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