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श्री सिद्धचक्र विधान
जगत जीव कल्याण कर, लोकालोक अनन्द। षटकायिक आह्लाद कर, जिम कुमोदनी चन्द॥
ॐ ह्रीं अर्ह विश्वभूतेशाय नमः अयं ॥४२६ ॥ इन्द्रादिक जे विश्वपति, तुम को पूजत आन। यातें तुम विश्वेश हो, साँच नमूं धर ध्यान ॥
ॐ ह्रीं अहं विश्वेनाय नमः अयं ॥४२७॥ . विश्व बन्ध दृढ़ तोड़ के, विश्व शिखर ठहराय। चरण कमल तल जगत है, यूं सब पूजत पाय॥
ॐ ह्रीं अहँ विश्वेश्वराय नमः अयं ॥४२८॥ शिव मारग की रीति तुम, बरतायो शुभ योग। तिहूँकाल तिहुँलोक में, और कुनीति अयोग॥
ॐ ह्रीं अर्ह अधिराजे नमः अर्घ्यं ।।४२९ ॥ लोक तिमिर हर सूर्य हो, तारण लोक जिहाज। लोकशिखर राजत प्रभू, मैं बन्दू हित काज॥ . ॐ ह्रीं अर्ह लोकेश्वराय नमः अयं ॥४३०॥ तीन लोक प्रतिपाल हो, तीन लोक हितकार। तीन लोक तारण-तरण, तीन लोक सरदार॥
ॐ ह्रीं अर्ह लोकपतये नमः अध्यं ॥४३१॥ लोक पूज्य सुखकार हो, पूजत हैं हित धार। मैं पूजों नित भावसों, करो भवार्णव पार॥
ॐ ह्रीं अहँ लोकनाथाय नमः अध्यं ॥४३२॥ पूजनीक जग में सही, तुम्हें कहैं सब लोग। धर्म मार्ग प्रगटित कियो, यातें पूजन योग॥
ॐ ह्रीं अहँ जगपूज्याय नमः अध्यं ॥४३३॥