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श्री सिद्धचक्र विधान
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महा ईश महाराज हो, महा प्रताप धराय। महा जीव पूजें चरण, सब जन शरण सहाय॥
ॐ ह्रीं अहं महेशाय नमः अयं ॥४१८॥ परम कहो उत्कृष्ट को, धर्म तीर्थ बरताय। परमेश्वर यातें भये, बन्दूं तिन के पाय॥
__ॐ ह्रीं अहं परमेश्वर नमः अध्यं ॥४१९॥ तुम समान कोई नहीं, जग ईश्वर जगनाथ। महा विभव ऐश्वर्य को, धरो नमूं निज माथ॥
ॐ ह्रीं अहं महेशित्रे नमः अयं ॥४२०॥ चार प्रकारन में सदा, देव तुम्हें शिर नाय। सब देवन में श्रेष्ठ हो, नमूं युगल तुम पाय॥
ॐ ह्रीं अहं अधिदेवाय नमः अध्यं ॥४२१॥ तुम समान नहिं देव अरु, तुम देवन के देव। यो महान पदवी धरौ, तुम पूजत हूँ एव॥
ॐ ह्रीं अहँ महादेवाय नमः अयं ॥४२२॥ शिवमारग तुम में सही, देश पूजने योग। सहचारो तुम सुगुण हैं, और कुदेव अयोग।
ॐ ह्रीं अहं देवाय नमः अर्घ्यं ।।४२३॥ तीन लोक पूजत चरण, तुम आज्ञा शिरधार। त्रिभुवन ईश्वर हो सही, मैं पूजू निरधार॥
ॐ ह्रीं अहं त्रिभुवनेश्वराय नमः अयं ।।४२४॥ विश्वपती तुम को नमें, निज कल्याण विचार। सर्व विश्व के तुम पति, मैं पूजू उर धार॥
ॐ ह्रीं अर्ह विश्वेशाय नमः अयं ।।४२५ ॥