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श्री सिद्धचक्र विधान
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देव अतिशयसों खिरत ही, अक्षरार्थ मय होय। दिव्यध्वनि निश्चय करै, संशय तमको खोय॥
ॐ ह्रीं अहं अर्द्धमागधीयुक्तये नमः अध्यं ॥३२२॥ सब जीवन को इष्ट है, मोक्ष निजानन्द वास। सो तुमने दिखलाइयो, संशय मोह विनाश॥
ॐ ह्रीं अहं इष्टवाचे नमः अध्यं ॥३२३॥ नय प्रमाण ही कहत हैं, द्रव्य पर्याय सु भेद। अनेकान्त साधैं सही, वस्तु भेद निरखेद॥ ___ ॐ ह्रीं अहँ अनेकान्तदर्शिने नमः अध्यं ॥३२४॥ दुर्नय कहत एकान्त को, ताको अन्त कराय। सम्यक्मति प्रगटाइयो, पूर्जे तिनके पाय॥
ॐ ह्रीं अहं दुर्नयान्तकाय नमः अयं ॥३२५॥ . एक पक्षे मिथ्यात्व है, ताको तिमिर निवार। स्यादवाद सम न्यायतें, भविजन तारे पार॥
ॐ ह्रीं अहं एकान्तध्वान्तमिदे नमः अयं ॥३२६॥ जो हैं सो निज भाव में, हैं सदा निरवार। मोक्ष साध्य में सार हैं, सम्यक् वि अपार॥
ॐ ह्रीं अहं तत्ववाचे नमः अध्यं ॥३२७॥ निज गुण निज पर्याय में, सदा रहो निरभेद। शुद्ध बुद्ध अव्यक्त हो, पूजूं हूँ निरखेद॥
. ॐ ह्रीं अहं पृथकृते नमः अयं ॥३२८॥ स्यात्कार उद्योत कर, वस्तु धर्म निरशंस। तासु ध्वजा निर्विघ्न को, भाषो निधि विध्वंस॥
ॐ हीं अहं स्यात्कारध्वजावाचे नमः अयं ॥३२९ ॥