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श्री सिद्धचक्र विधान
सर्व अर्थ परकाश करि, निर इच्छा तुम बैन। धर्म सुमार्ग प्रवर्त्त को, तुम राजत हो ऐन॥
ॐ ह्रीं अहं सत्यवाक्याधिपाय नमः अध्यं ॥३१४॥ धर्म मार्ग परगट करै, सो शासन कहलाय। सो उपदेशक आप हो, तिस संकेत कराय॥
ॐ ह्रीं अहं सत्यशासनाय नमः अयं ॥३१५॥ अतिशय करि सर्वज्ञ हो, ज्ञानावरण विनाश। नेमरूप भवि सुनत ही, शिवसुख करत प्रकाश॥
ॐ ह्रीं अह अप्रतिशासनाय नमः अयं ॥३१६ ॥ कहै कथञ्चित धर्म को, स्यात वचन सुखकार। सो प्रमाणतें साधियो, नय निश्चय व्यवहार॥
___ ॐ ह्रीं अर्ह स्याद्वादिने नमः अध्यं ॥३१७ ॥ निर अक्षर वाणी खिर, दिव्य मेघ की गर्ज। अक्षरार्थ हो परिणवै, सुन भव्यन मन अर्ज।
ॐ ह्रीं अहं दिव्यध्वनये नमः अयं ॥३१८॥ नयं प्रमाण नहिं हतत है, तुम परकाशे अर्थ। शिवसुख के साधन विर्षे, नहीं गिनत हैं व्यर्थ॥
ॐ ह्रीं अहं अव्याहतार्थाय नमः अयं ॥३१९॥ करै पवित्र सु आत्मा, अशुभ कर्म मल खोय। पहुँचावै ऊँची सुगति, तुम दिखलायो सोय॥
___ॐ हीं अहं पुण्यवाचे नमः अध्यं ॥३२० ॥ तत्त्वारथ तुम भासियो, सम्यक् विर्षे प्रधान। मिथ्या जहर निवारणं, अमृत पान समान॥
ॐ ह्रीं अर्ह अर्थवाचे नमः अयं ॥३२१ ॥