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श्री सिद्धचक्र विधान
द्रव्य भाव द्वै विधि कही, यज्ञ यजन की रीति। सो सब तुमहीं हेत हैं, रचत नशैं सब भीति॥
ॐ ह्रीं अहँ यज्ञपतये नमः अर्घ्यं ॥२६६॥ महादेव शिवनाथ हो, तुम को पूजत लोक। मैं पूजूं हूँ भावसों, मेटों मन को शोक ॥
ॐ ह्रीं अहँ शिवनाथाय नमः अध्यं ॥२६॥ कृत्य भये निज भाव मैं, सिद्ध भये सब काज। पायो निज पुरुषार्थ को, बन्दूं सिद्ध समाज॥
___ॐ ह्रीं अहँ कृतकृत्याय नमः अर्घ्यं ॥२६८॥ . यज्ञ विधान के अंग हो, मुख नामी परधान। . तुम बिन यज्ञ न हों कभी, पूजत होय केल्यान॥
ॐ ह्रीं अहँ यज्ञाङ्गाय नमः अयं ॥२६९॥ मरण रोग के हरण से, अमर भये हो आप। शरणागत को अमर कर, अमृत हो निष्पाप॥
. ॐ ह्रीं अहँ अमृताय नमः अर्घ्यं ॥२७०॥ पूजन विधि अस्नान हो, पूजत शिवसुख होय। सुरनर नित पूजन करें, मिथ्या मति को खोय॥
ॐ ह्रीं अहँ यज्ञायनम नमः अर्घ्यं ॥२७१ ॥ जो हो सो सामान्य कर, धरत विशेष अनेक। वस्तु सुभाव यही कहो, बन्दूं सिद्ध प्रत्येक॥
ॐ ह्रीं अहँ वस्तुत्पादकाय नमः अर्घ्यं ॥२७२ ॥ इन्द्र सदा तुम थुति करें, मन में भक्ति उपाय। सर्व शास्त्र में तुम थुति, गणधरादि करि गाय॥
ॐ ह्रीं अर्ह स्तुतीश्वराय नमः अर्घ्यं ॥२७३॥