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श्री सिद्धचक्र विधान
कर्मों करि किरतार्थ ही, कृत फल उत्तम पाय। करपर कर राजत प्रभू, बन्दूं हूँ युग पाय॥ ___ॐ ह्रीं अहं कृतार्थकृतहस्ताय नमः अयं ॥२५०॥ दर्शन इन्द्र अघात हैं, उष्ठ मान उर माहिं। कर्म नाशि शिवपुर बसैं, मैं बन्दूं हूँ ताहि ॥
ॐ ह्रीं अहं शक्रेष्टाय नमः अयं ॥२५१॥ . मघवा जाके नृत्य करि, ताकै तृप्ति महान। सो मैं उनको जजत हूँ, होय कर्म की हान॥ ___ॐ ह्रीं अर्ह इन्द्रनृत्यतृप्तिकाय नमः अयं ॥२५२॥ . शची इन्द्र अरुकाम ये, जिन दासन के दास। निश्चय मन में नमन कर, नित वंदतपद जास॥ ___ॐ ह्रीं अहँ शचीविस्मापितम्बा नमः अयं ॥२५३ ॥ जिनके सनमुख नृत्य करि, इन्द्र हर्ष उपजाय। जन्म सुफल मानैं सदा, हम पर होउ सहाय॥ __ॐ ह्रीं अहँ शक्रारब्धानन्दनृत्याय नमः अर्घ्यं ॥२५४॥ धन सुवर्णतें लोक में, पूरण इच्छा होय। चक्रवर्ती पद पाइये, तुम पूजत हैं सोय॥
ॐ ह्रीं अहँ रैदपूर्णमनोरथाय नमः अयं ॥२५५ ॥ तुम आज्ञा में हैं सदा, आप मनोरथ मान। इन्द्र सदा सेवन करें, पाप विनाशक जान॥ ___ॐ ह्रीं अहं आज्ञार्थीइन्द्रकृतासेवाय नमः अर्घ्यं ॥२५६ ॥ सब देवन में श्रेष्ठ हो, सब देवन सिरताज। सब देवन के इष्ट हो, बंदत सुलभ सु काज॥
ह्रीं अहँ देवश्रेष्ठाय नमः अयं ॥२५७॥