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... श्री सिद्धचक्र विधान
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स्वै आतम थिरता धरै, नहीं चलाचल होय। निश्चल परम सुभाव में, भये प्रकृति को खोय॥
____ॐ ह्रीं अर्ह दृढ़ात्मने नमः अर्घ्यं ॥१४६ ॥ क्षयोपशम नानाविधै, क्षायक एक प्रकार। सो तुम में नहीं और में, बन्दूं योग सम्भार॥
ह्रीं अहँ एकविद्याय नमः अयं ॥१४७ ॥ कर्म पटल के नाशतें, निर्मल ज्ञान उदार। तुम महान विद्या धरो, बन्दूँ भाव सम्भार॥ __ॐ ह्रीं अहँ महाविद्याय नमः अर्घ्यं ॥१४८॥ परम पूज्य परमेश पद, पूरण ब्रह्म कहाय। पायो सहज महान पद, बन्दूँ तिनके पाय॥ .... ॐ ह्रीं अहँ महापदेश्वराय नमः अर्घ्यं ॥१४९॥ पञ्च परम पद पाइयो, ब्रह्म नाम है एक। पूर्जे मन-वच-काय करि, नाशैं विघन अनेक॥
ॐ ह्रीं अहँ पञ्चब्रह्मणे नमः अर्घ्यं ॥१५० ॥ निज विभूति सर्वस्व तुम, पायो सहज सुभाय। हीनाधिक बिन बिलसते, बन्दूँ ध्यान लगाय॥ .. ॐ ह्रीं अहँ सर्वध्यानाय नमः अयं ॥१५१ ॥ पूरण पण्डित ईश हो, बुद्ध धाम अभिराम। बन्दूँ मन-वच-काय करि, पाऊँ मोक्ष सुधाम॥ ... ॐ ह्रीं अहँ सर्वविद्येश्वराय नमः अर्घ्यं ॥१५२ ॥ मोह कर्म चकचूरतें, स्वाभाविक शुभ चाल। शुद्ध परिणाम धरै सदा, बन्दूं नित नमि भाल॥
____ ॐ ह्रीं अर्ह शुचये नमः अर्घ्यं ॥१५३ ॥