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श्री सिद्धचक्र विधान ।
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एकादशांग सर्वांग पूर्व, स्वै अनुभव पायो फल अपूर्व । अन्तर बाहिर परिग्रह नसाय, परमारथ साधू पद लहाय॥ हम पूजत नित उर भक्ति ठान, पावें निश्चय शिवपद महान। ज्योंशशिकिरणावलिसियरपाय,मणिचन्द्रकान्तिद्रवतालहाय॥
घत्तानन्द छन्द जय भव भयहारं बन्धविडारं, सुख सारं शिव करतारं । नित सन्तसुध्यावत पापनसावत, पावतपदनिजअविकारं॥ ॐ ह्रीं अहं द्वादशाधिकपञ्चशतदलोपरिस्थितसिद्धेभ्यो नमः पूर्णाम्।
सोरठा तुम गुणः अमल अपार, अनुभवतें भव भय नशै। सन्त सदा चित धार, शान्ति करो भवतप हरो॥
इत्याशीर्वादः॥ इति सप्तमी पूजा समाप्त॥