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श्री सिद्धचक्र विधान
अडिल्ल छन्द . . पञ्च परम गुरु नाम विशेषण को धरै,
तीन लोक में मंगलमय आनन्द करें। पूरण कर थुति नाम अन्त सुख कारणं,
पूजूं हूँ युत भाव सु अर्घ उतारणं॥ ॐ ह्रीं अहँ द्वादशाधिकञ्चशतगुणयुतसिद्धेभ्यो नमः पूर्णाधु ॥ यहां ॐ ह्रीं अह अ सि आ उ सा नमः १०८ बार जपना चाहिए।
जयमाला
रत्नत्रय भूषित महा, पञ्च सुगुरु शिवकार। सकल सुरेन्द्र नमें नमू, पाऊँ सो गुण सार॥
पद्धड़ि छन्द जय महामोह दल दलन सूर, जय निर्विकल्प आनन्दपूर। जय द्वै विधि कर्म विमुक्त देव, जय निजानन्द सवाधीन एव॥ जयसंशयादिभ्रमतमनिवार, जयस्वामिभक्तिद्युतिथुतिअपार। जय युगपत सकल प्रत्यक्ष लक्ष, जय निरावरण निर्मल अनक्ष॥ जय जय जय सुखसागर अगाध, निरद्वन्द्व निरामय निर उपाध। जयमन-वच-तनसबव्यापारनाश,जयथिरसरूपनिजपदप्रकाश॥ जय परनिमित्त सुख-दुःख निवार, निरलेपनिराश्रय निर्विकार। निज में पर को पर में न आप, परवेश न हो नित निर मिलाप॥ तुम परम धरम आराध्य सार, निज सम करि कारण दुर्निवार। तुम पञ्च परम आचार युक्त, नित भक्त वर्ग दातार मुक्त ॥