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श्री सिद्धचक्र विधान ....... [१९५ ::
स्वपर स्वहितकरि परम बुद्धि भरतार हो,
ध्यान धरत आनन्द बोध दातार हो। मोक्षमार्ग वा मोक्षश्रेय सब साधु हैं,
नमत निरन्तर हमहूँ कर्म रिपु को दहैं।
ॐ ह्रीं साधुउपाध्यायाय नमः अध्यं ॥५०९॥ पञ्च परम गुरु प्रगट तुम्हारो नाम है,
भेदाभेद सुभाव सु आतमराम है। मोक्षमार्ग वा मोक्षश्रेय सब साधु हैं,
. नमत निरन्तर हमहूँ कर्म रिपु को दहैं। ॐ ह्रीं साधुअर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः अयं ॥५१०॥ लोकालोक सु व्यापक ज्ञान सुभावते, .. तद्यपि निजपद लीन विहीन विभावतें। मोक्षमार्ग वा मोक्षश्रेय सब साधु हैं, - नमत निरन्तर हमहूँ कर्म रिपु को दहैं। ___ ॐ ह्रीं साधुआत्मरतये नमः अयं ॥५११॥ रतनत्रय निज भाव विशेष अनन्त हैं,
- पञ्च परम गुरु भये नमें नित सन्त हैं। मोक्षमार्ग वा मोक्षश्रेय सब साधु हैं,
नमत निरन्तर हमहूँ कर्म रिपु को दहैं। ॐ हीं साधुअर्हन्तसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुरत्नत्रयात्मकानन्तगुणेभ्यो नमः
अयं ॥५१२॥