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श्री सिद्धचक्र विधान
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सापेक्ष एकही कहै सु नय विस्तारा,
तुम भाव प्रगट कर कहै सुनिश्चय कारा। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुपरमस्याद्वादाय नमः अयं ॥४८२॥ है ज्ञान निमित यह वचन जाल परमाणा,
. वाचक वाच्य संयोग ब्रह्म कहलाना। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुशुद्धब्रह्मणे नमः अध्यं ॥४८३॥ षट् द्रव्य निरूपण करै सोई आगम हो, . तिसके तुम मूल निधान सु परमागम हो। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, __.मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं परमागमाय नमः अर्घ्यं ॥४८४॥ तीर्थेशं कहै सर्वज्ञ दिव्य धुनि माहीं,
- तुम गुण अपार इम कहो जिनागम ताहीं। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुजिनागमाय नमः अयं ॥४८५॥ तुम नाम प्रसिद्ध अनेक अर्थ का बाँची,
ताके प्रबोधसों हो प्रतीत मन साँची।