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श्री सिद्धचक्र विधान
निजरूप मगन मन ध्यान धेरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुएकत्वाय नमः अर्घ्यं ॥ ४७७ ॥ यद्यपि सामान्य सरूप सु पूरण ज्ञानी,
तद्यपि निज आश्रय भाव भिन्न परनामी । निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुएकत्वगुणाय नमः अर्घ्यं ॥४७८ ॥ है साधारण एकत्व द्रव्य तुम माहीं,
तुम सम संसार मँझार और कोऊ नाहीं । निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुएकत्वद्रव्याय नमः अर्घ्यं ॥ ४७९ ॥ यद्यपि सबही हो असंख्यात परदेशी,
तद्यपि निज में निजरूप स्वद्रव्य सुदेशी । निजरूप मगन मन ध्यान धेरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुएकत्वस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥ ४८० ॥ सामान्य रूप सब ब्रह्म कहावै ज्ञानी,
तिनमें तुम वृषभ सु परम ब्रह्म परणामी । निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुपरमब्रह्मणे नमः अर्घ्यं ॥ ४८१ ॥