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श्री सिद्धचक्र विधान
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सामान्य रूप सब साधु मुक्ति मग साथै,
हम पावै निज पद नेमरूप आराथें। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुसर्वशरणाय नमः अयं ॥४७३ ॥ त्रस नाड़ी ही मैं तत्त्वज्ञान सरधानी,
ताकर साथै निश्चय पावै शिवरानी। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ . ॐ ह्रीं साधुलोकशरणाय नमः अयं ॥४७४॥ .. तिहुँलोक करन हित वरते नित उपदेशा,
हम शरम गही मेटो भववास कलेशा। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
. मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ . ॐ ह्रीं साधुत्रिलोकशरणाय नमः अयं ॥४७५ ॥ संसार विषम दुःखकार असार अपारा,
तिस छेदक वेदक सुखदायक हितकारा। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ___ॐ ह्रीं साधुसंसारछेदकाय नमः अर्घ्यं ॥४७६ ॥ यद्यपि इक क्षेत्र अवगाह अभिन्न विराजे,
. तद्यपि निज सत्ता माहिं भिन्नता साजै।