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श्री सिद्धचक्र विधान
निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुज्योतिः प्रदीपाय नमः अर्घ्यं ॥४६८॥ सामान्यरूप अवलोकन युगपत सारा,
तुम दर्शन ज्योति प्रदीप हरै अँधियारा। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, ..
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुदर्शनज्योति:प्रदीपाय नमः अर्घ्यं ॥४६९॥ साकार रूप सु विशेष ज्ञान द्युति माहीं,
युगपत कर प्रतिबिम्बित वस्तु प्रगटाई। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराज,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुज्ञानज्योति:प्रदीपाय नमः अयं ॥४७०॥ जे अर्थ जन्य कहैं ज्ञान वो झूठे वादी,
है स्वपर प्रकाशक आतम ज्योति अनादी। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुआत्मज्योतिषे नमः अर्घ्यं ॥४७१ ॥ जे तारण तरण जिहाजा थित भवसागर,
हम शरण गहैं पावै शिववास उजागर। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुशरणाय नमः अयं ॥४७२ ॥