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श्री सिद्धचक्र विधान
निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुअनेकार्थाय नमः अयं ॥४८६ ॥ लोभादिक मेटे बिन न सौचता होई,
है वृथा तीर्थ स्नान करो भी कोई। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
___ ॐ ह्रीं साधुशौचाय नमः अर्घ्यं ॥४८७ ॥ है मिथ्या मोह प्रबल मल इनका खोना,
सो शुद्ध सौच गुम यही न तनका धोना। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुशुचित्वगुणाय नमः अर्घ्यं ॥४८८॥ इक देश कर्ममल नाश पवित्र कहायो,
तुम सर्व कर्ममल नाशि परम पद पायो। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुपवित्राय नमः अर्घ्य ४८९ ॥ तुम रहो बन्धसों दूरि एकान्त सुखाई,
ज्यों नभ अलिप्त सब द्रव्य रहो तिस माहीं। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, .. मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुविमुक्ताय नमः अर्घ्यं ॥४९०॥