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श्री सिद्धचक्र विधान
निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुद्रव्योत्पादाय नमः अयं ॥४५९॥ सूक्षम अलब्धि पर्याप्त निगोद शरीरा,
ते तुच्छ द्रव्य कर नाश भये भव तीरा। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, .
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुद्रव्यव्ययाये नमः अयं ॥४६०॥ . रागादि परिग्रह टारि तत्व सरधानी,
इम साधु जीव नित साधत शिव सुखदानी। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ - ॐ ह्रीं साधुजीवाय नमः अयं ॥४६१ ॥ स्वसंवेदन विज्ञान परम अमलाना,
तज इष्ट अनिष्ट विकल्प जाल सुखसाना। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥
ॐ ह्रीं साधुजीवगुणाय नमः अयं ॥४६२॥ देखन जानन चेतन सुरूप अविकारी,
___ गुण गुणी भेद में अन्य भेद व्यभिचारी। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुचेतनगुणाय नमः अयं ॥४६३॥