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श्री सिद्धचक्र विधान
निजरूप मगन मन ध्यान धेरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुनिजात्मशरणाय नमः अर्घ्यं ॥ ४५० ॥ भववास दुःखी जे शरम गहैं तुम मन में,
तिनको अवलम्ब उभारो भयहर छिनमें । निजरूप मगन मन ध्यान धेरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुवीर्यशरणाय नमः अर्घ्यं ॥४५१ ॥ दृगबोध अनन्तानन्त धरो निरखेदा,
तुम बल अपार शरणागति विघन विछेदा । निजरूप मगन मन ध्यान धेरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुवीर्यात्मशरणाय नमः अर्घ्यं ॥ ४५२ ॥ निज ज्ञानानन्दी महा लक्ष्मी सोहै,
सुर असुरन में नित परम मुनी मन मोहै । निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुलक्ष्मीअलंकृताय नमः अर्घ्यं ॥ ४५३ ॥ भववास महादुःखरास ताहि विनशाया,
अति क्षीन लीन स्वाधीन महासुख पाया । निजरूप मगन मन ध्यान धेरै मुनिराजै,
मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुलक्ष्मीप्रणीताय नमः अर्घ्यं ॥ ४५४ ॥